एम्स ने अपना प्रोटोकॉल बनाया है और महामारी से लेकर अब तक 7 बार बदलाव किये हैं। लोगों के मन में लक्षणों को लेकर और उसके ईलाज को लेकर कई सवाल हैं।
बुजुर्ग और गंभीर बीमारी वाले लोगों के इलाज के लिए फिजिशियन आइवर मैक्टिन को प्रेस्क्राइब कर सकते हैं।
हल्के लक्षण वाले मरीज पर स्टेरॉयड्स का इस्तेमाल नही करना चाहिए।
हल्के लक्षण वाले मरीज को होम आइसोलेशन की सलाह दी जाती है।
यदि सांस लेने में दिक्कत, तेज बुखार, तेज खांसी, ऑक्सीजन लेवल कम हो तो डॉक्टर से संपर्क करें।
रोगियों को ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत उस वक्त होती हैजब उनका रेस्पिरेट्री रेट _>24/min से कम हो तो अस्पताल में भर्ती होकर ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जाता है। ऐसे रोगियों को एंटी वायरल थेरिपी, प्लाज्मा थेरेपी, एंटी इनफ्लेमेटरी और इम्यूनिटो मॉडिलेट्री थेरिपी दी जाती है।
कुछ रोगियों में खून के थक्के न जमें उसके लिए दवा दी जाती है।
वेंटीलेटर सपोर्ट और ICU में भर्ती होने की नौबत तब आती है जब रोगी का रेस्पिरेट्री रेट _>30/min हो तो उन्हें हाई फ्लो नेजल कैनुला के जरिये रेस्पिरेट्री सपोर्ट की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर नॉन इनवेसिव वेंटीलेटर या कंवेंशनल वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखा जा सकता है।
यदि बीमारी 10-14 दिन से कम है तो एंटी वायरल देने पर विचार किया जाता है।
जब रोगी में हल्के लक्षण हों तो उन्हें एचटी प्लाज्मा थेरेपी दी जा सकती है।
जब रोगी में गंभीर लक्षण पाये जाते हैं तब पेशेंट को रेमडेसिवर का इंजेक्शन दिया जाता है। यह इंजेक्शन हल्के लक्षण वालों को नही दिया जाता।
1st stage
होम आइसोलेशन या होम क्वार्नटाइन
कोई भी लक्षण नही होना। कभी हल्का बुखार/सर्दी/गला बंद होना/उल्टी दस्त
2nd stage
A- अस्पताल/आईसीयू
बुखार लगातर बने रहना/सिरदर्द/सीटी स्कैन में घाओं का नजर आना।
B- निमोनिया होना/खून में ऑक्सीजन लेवल 92% से कम होना।
3rd stage
ICU- सांस लेने में दिक्कत होना/ऑक्सीजन लेवल लगातर घटना/दिल का दौरा पड़ना/किडनी का काम करना बंद हो जाता है या काम करना कम कर देता है।
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